गलती मानने और मनवाने वाले जगमोहन डालमिया की आंखें देख रहीं हैं क्रिकेट ! -
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गलती मानने और मनवाने वाले जगमोहन डालमिया की आंखें देख रहीं हैं क्रिकेट !

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इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि डालमिया जैसा काबिल या उनसे बेहतर व्यक्ति भारतीय क्रिकेट प्रशासन में आ सकता है लेकिन इसमें दो राय नहीं कि डालमिया ने भारतीय ही नहीं बल्कि एशियाई और विश्व क्रिकेट को सम्मान दिलाने और धनवान बनाने में जो भूमिका निभाई है उसकी बराबरी करना आसान नहीं होगा।

डालमिया साहब ने अपनी आंखे दान की थीं। इस बारे में उन्होंने कहा था। मैं चाहता हूं कि मेरे मरने के बाद भी मेरी आंखें क्रिकेट देखें।उम्मीद है ऐसा ही हो रहा होगा। जन्मदिवस पर सादर नमन।

 

राकेश थपलियाल

रविवार को बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरव गांगुली का ट्वीट देखा जिसमे उन्होंने बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया को उनके जन्मदिवस पर याद किया। कुछ पुरानी यादें ताजा हो गईं। ऐसे में उनके  बारे में कुछ लिखकर श्रद्धांजलि देने का मन कर उठा। डालमिया साहब का जन्म 30 मई 1940 को हुआ था। वह गजब के क्रिकेट प्रशासक थे। सही बात के लिए अड़ जाते थे और अपनी गलती को तुरंत स्वीकार कर लिया करते थे।

20 नवंबर 2015 की बात है।  मैं रविवार की उस रात दिल्ली के प्रेस क्लब में टाइम्स ऑफ इंडिया डॉट कॉम की टीम के सदस्यों के साथ बैठा था। तभी मशहूर सिने अभिनेता टॉम ऑल्टर के बेटे जेमी ऑल्टर ने बताया कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया का कोलकाता में निधन हो गया है। सुनकर एकदम से झटका लगा और खेल पत्रकारिता के 25 वर्षों के दौरान डालमिया साहब के साथ दिल्ली, कोलकाता और देश के अन्य शहरों में हुई तमाम मुलाकातोें, प्रेस कॉन्फ्रेंस और बातचीत के दौर की यादें एकदम से ताजा हो गईं। इसके साथ ही मस्तिष्क में एक सवाल उठा कि क्या भविष्य में  जगमोहन डालमिया जैसा क्रिकेट प्रशासक मिल सकेगा? इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि डालमिया जैसा काबिल या उनसे बेहतर व्यक्ति भारतीय क्रिकेट प्रशासन में आ सकता है लेकिन इसमें दो राय नहीं कि डालमिया ने भारतीय ही नहीं बल्कि एशियाई और विश्व क्रिकेट को सम्मान दिलाने और धनवान बनाने में जो भूमिका निभाई है उसकी बराबरी करना आसान नहीं होगा। लेकिन भारतीय क्रिकेट बोर्ड के धनवान होने से पहले ही डालमिया ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी धमक का अहसास करा दिया था।
यह डालमिया का ही व्यक्तिव था कि वह भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष बनने से पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अध्यक्ष बने थे। बीसीसीआई से आर्थिक घोटालों के आरोप में निष्कासित होने के बावजूद वह फिर से इसके अध्यक्ष पद पर विराजमान हुए।
डालमिया अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट प्रशासकों के बीच 1984 में उस समय चर्चित हुए थे जब इंग्लैंड में क्रिकेट के तीर्थ माने जाने वाले ऐतिहासिक लॉड्र्स में विश्व क्रिकेट से जुड़े तमाम देशों के प्रतिनिधियों की बैठक चल रही थी। इस बैठक में तय होना था कि अगले विश्व कप की मेजबानी किस देश को दी जाए। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और महान बल्लेबाज सर कोलिन कॉउड्रे आईसीसी के अध्यक्ष थे और पूरी कोशिश कर रहे थे कि विश्व कप का आयोजन इंग्लैंड में ही हो यह देखकर डालमिया से रहा नहीं गया और वह खड़े हुए और उन्होंने सर कॉउड्रे की तरफ मुखातिब हुोते हुए कहा, ‘मिस्टर कॉउड्रे यू हैव बीन रिटायर्ड फ्रॉर्म प्लेइंग क्रिकेट इयर्स एगो, बट इट सीम्स दैट यू आर स्टिल बैटिंग फोर इंग्लैंड!’ डालमिया के श्रीुमुख से निकले इस वाक्य को सुनकर कॉउड्रे तो सन्न रह गए साथ ही बैठक में मौजूद सभी सदस्यों को मानो सांप सूंघ गया था। किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि कोलकाता का एक क्लब स्तरीय क्रिकेटर जो अपने देश के क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष भी नहीं था, सर कॉउड्रे का विरोध खुले आम इस तरह से करेगा। इसका असर यह हुआ कि सर कॉउड्रे ने तुरंत हथियार डाल इंग्लैंड की तरफदारी बंद कर दी और भारत और पाकिस्तान को 1987 के विश्व कप की मेजबानी मिल गई। यह पहला मौका था जब विश्व कप का आयोजन इंग्लैंड के बाहर होना तय हुआ था।
डालमिया अगर भरी महफिल में किसी की गलत बात का विरोध करने की हिम्मत रखते थे तो अपनी गलत बात को स्वीकारने में भी नहीं चूकते थे। मुझे याद है 2003 की बात है डालमिया के कॉस्टिंग वोट की वजह से हरियाणा के रणबीर सिंह महेंद्रा मराठा छत्रप और जिंदगी में कोई चुनाव न हारने वाले शरद पवार को मात देकर बीसीसीआई के अध्यक्ष बने थे । इसे अदालत में  चुनौती दी गई और अनेक माह की कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने रणबीर के चुनाव को सही ठहराया था। इसकी जानकारी देने के लिए डालमिया ने दिल्ली के पांच सितारा होटल में प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया। स्टेज पर पेशे से वकील रणबीर और डालमिया बैठे थे। टीवी और प्रिंट मीडिया के पत्रकारों से खचाखच भरे हॉल में कांफ्रेंस के अंतिम दौर में मैंने डालमिया से कहा, मिस्टर डालमिया इससे पूर्व इस मामले में जब कभी भी अदालत का फैसला आता था और हम आपसे प्रतिक्रिया मांगते थे तो आप यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लेते थे कि, मैंने अभी तक अदालत का फैसला पढ़ा नहीं है और इसलिए मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। आप ऐसा इसलिए करते थे क्योंकि वो फैसला आपके उठाए कदम के खिलाफ होता था। जहां तक मुझे पता है आज भी आपको अभी तक अदालत का लिखित फैसला नहीं मिला है और इसलिए जाहिर है आपने उसे पढ़ा भी नहीं होगा पर इसके बाद भी आप प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर उस पर खुलकर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं, ऐसा क्यों? क्या इसलिए कि फैसला आपके पक्ष में आया है? इस सवाल को सुनने के बाद डालमिया ने तपाक से कहा, ‘जेंटलमैन आप बिलकुल सही कह रहे हैं। हमें अभी अदालत का लिखित फैसला नहीं मिला है और इसलिए मैंने उसे पढ़ा भी नहीं है। आपका यह कहना भी ठीक है कि पूर्व में मैं मीडिया के पूछने पर यह कहता रहा हूं कि अदालत का फैसला पढ़ने के बाद ही अपनी प्रतिक्रिया दूंगा। इसलिए वर्तमान मामले में भी मुझे अभी प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए थी परन्तु मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि टीवी पर खबर चलने के बाद मीडिया वालों के फोन आ रहे थे तो मैंने सोचा कि प्रेस कांफ्रेंस कर सबके सवालों के जवाब देते हैं। यहां मैं जो बोल रहा हूं वह बीसीसीआई के वकीलों ने फैसले के बारे में जो बताया है उसके आधार पर बोल रहा हूं।’ इस सवाल जवाब के बारे में अगले दिन टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स  अखबारों ने अपनी रिपोर्ट में छापा भी था।
ये दो उदाहरण लिखने का मेरा उद्देश्य यह दर्शाना है कि डालमिया अगर दूसरों की गलत बातों को नहीं सहते थे तो अपनी गलती को भी एकदम सार्वजनिक रूप से स्वीकारने में भी नहीं हिचकते थे। उनका यह बड़ा गुण था जिसकी वजह से सफलता की नित नई सीढ़ियां चढ़ते गए थे।
डालमिया अपने और खिलाड़ियों के लिए अड़ने और लड़ने वाले प्रशासक थे। उनकी छवि एक मजबूत और सशक्त प्रशासक की रही लेकिन वह बहुत ही हंसमुख इंसान भी थे। मुझे याद है 2001 का कोलकाता का ऐतिहासिक टेस्ट मैच जिसमें भारत ने फॉलोऑन की शर्म झेलने के बाद ऑस्ट्रेलिया को मात दी थी। इस टेस्ट में हरभजन सिंह भारत की तरफ से टेस्ट क्रिकेट में हैट्रिक लेने वाले पहले गेंदबाज बने थे। हैट्रिक से ठीक पहले डालमिया ईडन गार्डन के प्रेस बाक्स में आए थे। काफी देर से विकेट नहीं गिर रहा था। डालमिया मेरे आगे की सीट पर बैठ गए और हरभजन ने हैट्रिक का पहला विकेट झटक लिया। अचानक डालमिया उठने लगे तो मैंने उनसे कहा, ‘डालमिया साहब आप सीट मत छोड़िए।’ वह कुछ सोचते इससे पहले ही एक और विकेट निकल गया। इस पर डालमिया ने कहा, ‘अब मैं हैट्रिक होने का इंतजार करता हूं, शायद हरभजन इतिहास बना दे।’ इसके बाद हैट्रिक पूरी होने पर ही वह सीट से उठे। कुछ समय बाद फिरोजशाह कोटला मैदान में टेस्ट मैच खेला जा रहा था। भारतीय गेंदबाजों को विकेट नहीं मिल रहे थे। डालमिया पत्रकारों से मिलने प्रेस बाक्स में आए हुए थे। मैंने उन्हें कोलकाता टेस्ट की घटना उन्हें याद दिलाते हुए सीट पर बैठने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा, ‘वो बात मुझे अभी तक याद है लेकिन मैं यहां बैठ भी जाऊं तब भी विकेट गिरने पर संदेह रहेगा क्योंकि यहां कोलकाता वाली सीट नहीं है। इसलिए वहां वाला जादू यहां शायद काम नहीं करेगा।’
एक और घटना उन दिनों की है जब 2000 में डालमिया आईसीसी के अध्यक्ष थे। डालमिया ने दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई थी। लेकिन उसमें चंद पत्रकार ही पहुंचे इस पर डालमिया ने कहा, ‘यह प्रेस कांफ्रेंस मैच फिक्सिंग से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मुद्दे है इसलिए मैं चाहता हूं कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों जैसे एपी, रॉयटर्स, एएफपी के पत्रकार भी आते तो ठीक रहता।’ इस पर पत्रकार अनिरूद्ध बहल ने इन तीनों एजेंसियों के पत्रकारों से बात कर डालमिया को बताया, ‘वे आने को तैयार हैं पर एक घंटे का समय लगेगा।’ इस पर डालमिया ने वहां मौजूद पांच-छह पत्रकारों और फोटोग्राफरों से कहा, ‘आप लोग मेरे साथ मेरे सूइट में चलिए वहां बैठक कुछ देर बातचीत करेंगे।’ कमरे में पहुंचकर डालमिया ने पत्रकारों के लिए चाय और कॉफी का ऑर्डर देने के लिए फोन उठाया ही था कि इंडिया टुडे के फोटोग्राफर भवान सिंह ने फोटो खींचना शुरू कर दिया। जब डालमिया ऑर्डर दे चुके तो मैंने मजाक करते हुए उनसे कहा, डालमिया साहब, ‘यह फोटो मिल जाए तो हमारे अखबार की फ्रंट पेज स्टोरी तैयार हो जाएगी।’ यह सुनकर डालमिया ने तपाक से कहा, अभी तो मैंने कुछ बोला ही नहीं फिर स्टोरी कैसे बनी।’ इस पर मैंने कहा, मैं इस फोटो को छाप कर स्टोरी में लिखूंगा कि मैच फिक्सिंग का रैकेट कोई और नहीं बल्कि आईसीसी अध्यक्ष जगमोहन डालमिया अपने होटल के कमरे से चलाते हैं। आखिर सट्टेबाज जब पकड़े जाते हैं तो उनके पास से कुछ टेलीफोन, मोबाइल फोन और फैक्स मशीन आदि चीजें ही तो मिलती हैं और ये सब आपके कमरे में मौजूद है।’ इस पर डालमिया ने जोरदार ठहाका लगाते हुए कहा, ‘कोलकाता में तो यह स्टोरी छप सकती है।’
भारत के पूर्व महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने डालमिया के बारे में सही कहा था कि भारतीय क्रिकेट में उनकी खिलखिलाती हंसी की कमी खलेगी।

डालमिया साहब ने अपनी आंखे दान की थीं। इस बारे में उन्होंने कहा था। मैं चाहता हूं कि मेरे मरने के बाद भी मेरी आंखें क्रिकेट देखें।

उम्मीद है ऐसा ही हो रहा होगा। जन्मदिवस पर सादर नमन।

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