हरियाणा में चौधरी अजित सिंह की लोकप्रियता का अनूठा उदाहरण -
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हरियाणा में चौधरी अजित सिंह की लोकप्रियता का अनूठा उदाहरण

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मैंने उनसे पूछा कि चुनाव में नेता खेल और खिलाड़ियों के हितों की बात क्यों नहीं करते? आपके बागपत, मेरठ और मुजफ्फरनगर से तो अच्छे खिलाड़ी शूटर, एथलीट, पहलवान, क्रिकेटर आदि निकल रहे हैं। यह सुनकर उन्होंने तपाक से कहा ‘ज्यादातर एक लोकसभा सीट में कितने खिलाड़ी वोटर होते हैं? बहुत कम होते हैं। इसलिए नेता खिलाड़ियों पर जोर नहीं देते।’ मैंने तर्क दिया कि आप नेताओं को खिलाड़ियों की संख्या ही नहीं देखनी चाहिए, उनका परिवार और समर्थक भी वोटर होते हैं। लेकिन वह मेरे तर्क से सहमत नही दिखे।

राकेश थपलियाल

देश में किसानों और जाटों के बड़े नेता चौधरी अजित सिंह के निधन पर उनको जानने वाले दुखी मन से उनसे जुड़े पुराने किस्से लिखकर अखबारों और सोशल मीडिया पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। उसी कड़ी में उनके साथ हुई एक ही मुलाकात, जिसमे उनसे बातचीत हुई, का जिक्र यहां कर रहा हूं। लिखते लिखते याद आया की अनेक वर्ष पूर्व उनकी माता जी के निधन के बाद शूटिंग कोच डॉक्टर राजपाल सिंह शोक व्यक्त करने उनके नई दिल्ली वाले घर लेकर गए थे। तब शायद चौधरी साहब घर पर ही थे। उनसे मेरी पहली बातचीत वाली मुलाकात 10 अप्रैल, 2019 की शाम को मुजफ्फरनगर के एक होटल में हुई थी। 11अप्रैल को मुजफ्फरनगर में लोकसभा का चुनाव था और चौधरी अजित सिंह राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार थे। दिल्ली से पत्रकारों का लगभग 20 सदस्यीय दल मुजफ्फरनगर गया था। चौधरी साहब के खास जानकार और पत्रकार के पी मलिक ने यात्रा का प्रबंध किया था। किसी लोकसभा चुनाव में वोट डालने के अलावा मेरा कोई अनुभव नहीं था। एक खेल पत्रकार के तौर पर खेल संगठनो के चुनाव तो बहुत कवर किए। इनसे अलग 2009 में आईपीएल कवर करने के दौरान दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए संपादक श्रीमति मृणाल पांडे जी के अचानक मिले आदेश पर वहां आम चुनाव के दिन वोटिंग खत्म होने के बाद तथ्य जुटाकर केप टाउन शहर से एक राजनीतिक रिपोर्ट लिखी थी जो ‘हिन्दुस्तान’ अखबार के पहले पन्ने पर छपी थी।
चौधरी साहब से चुनाव की पूर्वसंध्या पर मुलाकात को लेकर उत्साह था। वर्षों पूर्व जब ये पता चला था कि वह अमेरिका में पढ़े हैं और वहां नौकरी कर चुके हैं तो मुझे हैरानी हुई थी। उनसे मिलना एक नया अनुभव था। होटल के हाल में प्रवेश करते ही उन्होंने कहा था, ‘अरे पूरी दिल्ली की नेशनल प्रेस यहां दिख रही है। लगता है ये चुनाव बहुत बड़ा हो गया है।’ वह सभी के साथ गर्मजोशी से मिले थे और बात-बात पर खूब ठहाके लगाते रहे थे। अपनी उम्र का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था, ‘अभी तो मै सिर्फ 80 वर्ष का ही हूं।’ शायद उन्होंने ये कहा था कि ‘ये मेरा अंतिम चुनाव है और मुझे लोगों का बहुत प्यार मिल रहा है। जीत दिख रही है।’ वह लगभग साढ़े छह हजार वोटों से हारे थे।


उस दिन उनसे जुड़ा एक किस्सा उन्हें सुनाना याद नही रहा।ठीक से याद नहीं, शायद 2001की बात है। हरियाणा के गुड़गांव में बॉक्सिंग फेडरेशन का एक समारोह था। इसमें फेडरेशन की बॉक्सिंग पर एक किताब का विमोचन होना था। भिवानी के सांसद अजय चौटाला मंच पर मौजूद थे। उनके भाई अभय सिंह चौटाला बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेजिडेंट थे। वो शायद समारोह में नहीं आए थे। किताब का विमोचन हुआ और जोर-शोर से बताया गया कि इसमें भारतीय बॉक्सिंग के इतिहास की भरपूर जानकारी है। इस किताब को स्कूल कॉलेजों की लाइब्रेरी में भेजा जाएगा। इन घोषणाओं के बीच किताब सभी को बांट दी गई। बड़ी संख्या में भारतीय बॉक्सिंग से जुड़े लोग मौजूद थे। मैंने एक दो पन्ने पलटने के बाद। अजय चौटाला से सवाल किया कि ‘इसमें जो इतिहास और बॉक्सरों के पदक जीतने की जानकारी दी गई है उसकी विश्वसनीयता क्या है?’
इस पर अजय चौटाला ने पूरी अकड़ और विश्वास के साथ कहा, ‘ये फेडरेशन की आधिकारिक किताब है और बहुत ध्यान देकर बॉक्सिंग के जानकार लोगों ने इसे लिखा है।’
इस पर मैंने कहा, आप इसका पेज नंबर (3 या 4 ठीक से याद नहीं है) देखिए। इसमें बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के वर्तमान प्रेजिडेंट का नाम ही सही नहीं लिखा है तो इसमें छपे 50 वर्ष पूर्व हुई किसी प्रतियोगिता के रिकॉर्ड की क्या गारंटी है कि वह सही होंगे? इसके साथ मैंने चुटकी लेते हुए यह भी कह दिया कि लगता है लिखने वाला और उसे चेक करने वाला आपके भाई से ज्यादा उत्तर प्रदेश के एक मशहूर राजनेता से प्रभावित है। इतना सुनने के बाद तो पूरा माहौल तनावपूर्ण हो गया। अजय चौटाला ने उस पेज को देखा जिस पर बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेजिडेंट का नाम अभय सिंह चौटाला नहीं बल्कि अजित सिंह लिखा था। इसके बाद उन्होंने बड़े गुस्से से बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के वर्किंग प्रेजिडेंट की तरफ देखा और गलती स्वीकारते हुए कहा, ‘इसे ठीक कराकर दुबारा छापेंगे।’
बॉक्सिंग से जुड़े तमाम लोगों ने मुझे हरियाणा में चौटाला के समारोह में उनकी कमी उजागर करने की हिम्मत दिखाने पर दबी जुबान में बधाई दी। कुछ ने संभलकर रहने की सलाह भी दी।
दिलचस्प बात यह भी रही कि कुछ दिनों बाद दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी के अखबार ने खेल पेज पर छपने वाले लोकप्रिय साप्ताहिक कॉलम में इस किताब के विमोचन का जिक्र करते हुए लिखा कि ‘एक हिंदी भाषा के पत्रकार ने समारोह को खराब करने का प्रयास किया।’

खैर, चौधरी अजित सिंह साहब से मुलाकात पर वापस आते हुए। मैंने उनसे पूछा कि चुनाव में नेता खेल और खिलाड़ियों के हितों की बात क्यों नहीं करते? आपके बागपत, मेरठ और मुजफ्फरनगर से तो अच्छे खिलाड़ी शूटर, एथलीट, पहलवान, क्रिकेटर आदि निकल रहे हैं। यह सुनकर उन्होंने तपाक से कहा ‘ज्यादातर एक लोकसभा सीट में कितने खिलाड़ी वोटर होते हैं? बहुत कम होते हैं। इसलिए नेता खिलाड़ियों पर जोर नहीं देते।’ मैंने तर्क दिया कि आप नेताओं को खिलाड़ियों की संख्या ही नहीं देखनी चाहिए, उनका परिवार और समर्थक भी वोटर होते हैं। लेकिन वह मेरे तर्क से सहमत नही दिखे।


इसी दौरान मैंने दिल्ली में हिन्दुस्तान, नई दुनिया, नेशनल दुनिया जैसे अखबारों में वरिष्ठ पदों पर रहे श्री अशोक किंकर जी के बारे में चौधरी साहब को बताया कि इनके पिताजी आपके पिताजी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान केन्द्रीय मंत्री रहे हैं। इस पर उन्होंने अशोक जी से उनके पिताजी का नाम पूछा। अशोक जी ने जैसे ही बताया श्री राम किंकर। वह तपाक से बोले ‘अरे, उन्हें तो बहुत अच्छी तरह से जानता था।’ इसके बाद अशोक जी ने कुछ पुरानी बातें उन्हें बताई तो वह बहुत खुश हुए।
जो चला जाता है उसकी यादें ही रह जाती हैं। भगवान चौधरी अजित सिंह की आत्मा को शांति दे।🙏🏼🙏🏼.

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