खेल मंत्रालय ने इंडियन स्टाइल रेसलिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया को फिर से मान्यता देकर मिट्टी की कुश्ती में फूंकी जान -
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खेल मंत्रालय ने इंडियन स्टाइल रेसलिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया को फिर से मान्यता देकर मिट्टी की कुश्ती में फूंकी जान

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  • इंडियन स्टाइल रेसलिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सभी पदाधिकारियों ने खेल मंत्रालय का विशेष आभार प्रकट किया है

इंडियन स्टाइल रेसलिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पदाधिकारी दिल्ली में बैठक के दौरान।

राकेश थपलियाल

नई दिल्ली।भारत में मिट्टी और गद्दे की कुश्ती के बीच संघर्ष दशकों पुराना है। वर्तमान में जब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुकाबले मैट यानी गद्दे पर ही होते हैं, फिर भी मिट्टी पर कुश्ती कराने के अधिकार की सत्ता का संघर्ष भी कोर्ट से लेकर सरकार तक चलता रहा है। इस मामले में रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (डब्लू एफ आई) और इंडियन स्टाइल रेसलिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया के बीच उठापटक चलती रहती है। लगभग दो वर्ष पूर्व डब्लू एफ आई ने भी मिट्टी की राष्ट्रीय प्रतियोगिता करा दी थी।
इंडियन स्टाइल रेसलिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया के नवनिर्वाचित अध्यक्ष, बहादुरगढ़ के पूर्व विधायक नफे सिंह राठी का दावा है कि भारत सरकार के खेल मंत्रालय ने 8 मार्च को पत्र जारी कर उनके संगठन को एक पूर्ण खेल फेडरेशन के रूप में मान्यता दे दी है।

 

इस सुखद खबर को सुनने के लिए वो व्यक्ति अब जीवित नहीं हैं जिन्होंने इस संघर्ष को जिंदा रखने और उसके मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन हर कोई पूर्व पहलवान और कोच द्रोणाचार्य अवार्ड विजेता स्वर्गीय रोशन लाल सचदेवा को उनके जोरदार योगदान के लिए याद कर रहा है

स्वर्गीय रोशन लाल द्रोणाचार्य अवॉर्ड प्राप्त करते हुए।

इससे उनके पास देशभर में मिट्टी की कुश्ती के दंगल कराने का अधिकार रहेगा। इस सुखद खबर को सुनने के लिए वो व्यक्ति अब जीवित नहीं है जिन्होंने इस संघर्ष को जिंदा रखने और उसके मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन हर कोई पूर्व पहलवान और कोच द्रोणाचार्य अवार्ड विजेता स्वर्गीय रोशन लाल सचदेवा को उनके जोरदार योगदान के लिए याद कर रहा है।
इंडियन स्टाइल रेसलिंग एसोसिएशन के सभी पदाधिकारियों ने खेल मंत्रालय का विशेष आभार प्रकट किया है।
2010 तक उनके पास मान्यता थी लेकिन नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट कोड ऑफ इंडिया 2011के नियमों के अनुसार कार्य न करने पर मान्यता को आगे नहीं बढ़ाया गया था। अब खेल मंत्रालय के निर्देश पर इन्होने पदाधिकारियों की उम्र, समय पर चुनाव आदि नियमों के अनुसार अपने संविधान में बदलाव कर लिया है तो इन्हे एक वर्ष के लिए मान्यता दे दी गई है।

नफे सिंह राठी, अध्यक्ष, इंडियन स्टाइल रेसलिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया।

इनके कार्यों पर नजर रखी जाएगी और अब इसे घर की खेती की तरह नहीं चलाया जा सकेगा।
आज के युग में मिट्टी की कुश्ती पर इतना जोर क्यों? इस सवाल पर इंडियन स्टाइल रेसलिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष नफे सिंह राठी और महासचिव गौरव सचदेवा ने कहा, ‘हमारे देश में आज भी गांव गांव में बच्चे मिट्टी पर ही कुश्ती की शुरुआत करते हैं। मिट्टी की कुश्ती की अहमियत अभी बरकरार है। हम इसे बढ़ावा देते आ रहे है और अब और उत्साह से जुड़ेंगे। हमारे राष्ट्रीय दंगलों में आज वाले पहलवानों को भी अन्य राष्ट्रीय खेल महासंघों की तरह रेलयात्रा में डिस्काउंट आदि सभी सुविधाएं मिलेंगी। इससे कुश्ती में अधिक प्रतिभाएं सामने आएंगी।’
यह पूछने पर कि डब्लू एफ आई भी मिट्टी पर राष्ट्रीय प्रतियोगिता करा चुकी है और आगे भी कराएगी। इस पर नफे सिंह ने कहा, ‘हमारा संगठन 1958 से मिट्टी पर राष्ट्रीय प्रतियोगिता, भारत केसरी, रुस्तमे हिंद, भारत भीम, हिंद केसरी खिताब के मुकाबले करा रहा है। अब डब्लू एफ आई इसे नही कराएगी।
अभी हमने फैसला किया है कि दो माह में हिंद केसरी और राष्ट्रीय प्रतियोगिता हरियाणा में कराएंगे। हम रोशन लाल जी के प्रयासों के आभारी हैं। उन्होंने और उनके बेटे गौरव ने बहुत मेहनत की है । अंतरराष्ट्रीय संगठन यू डब्लू डब्लू ने हमारे सहित 75 देशों को मिट्टी पर कुश्ती प्रतियोगिता कराने की मान्यता दी है।
वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ इंडियन स्टाइल रेसलिंग का गठन भी किया जा चुका है। हम अब मिट्टी की कुश्ती को ओलंपिक में भी कराने का अनुरोध करेंगे।’

इंडियन स्टाइल रेसलिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की प्रेस कॉन्फ्रेंस में खेल पत्रकार।

गौरव के अनुसार, ‘हमारी इकाई 23 हैं। इनमें 18 राज्य और 6 बोर्ड हैं। हम मिट्टी की कुश्ती को स्कूल और कॉलेज के स्तर पर के जाएंगे।उसमे सब जूनियर और जूनियर की शुरुआत करेंगे।’
खेल मंत्रालय की मान्यता ने फिलहाल तो मिट्टी की कुश्ती और उसे चलाने वाले पदाधिकारियों में जान फूंक दी है। देखने वाली बात यह होगी कि डब्लू एफ आई का क्या रुख रहता है। इसमें दो राय नहीं कि पहलवानों को मिट्टी के दंगलों में लड़ने से आर्थिक फायदा मिलेगा और देहात के पहलवानों को कुश्ती का अनुभव प्राप्त होगा जो भविष्य के लिए उन्हें मदद करेगा। जरूरी यह भी है की दंगल में हेराफेरी न हो और पहलवानों को अच्छी सुविधाएं और पहले से घोषित इनामी राशि पूरी ईमानदारी से मिले। इस पर नजर रखने की जिम्मेदारी खेल मंत्रालय को भी बखूबी उठानी होगी। वरना पदाधिकारियों के हित तो साधेंगे पर पहलवान धक्के खाते ही मिलेंगे।

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